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वैष्णव चेतन "चिंगारी"

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वैष्णव चेतन "चिंगारी"

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क्या नहीं देखा ( 72 )

क्या नहीं देखा ( 72 )

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मैंने अपने जीवन में 

कई उतार-चढ़ाव देखे है,

बीतती उम्र के साथ-साथ 

जिंदगी के ढंग बदलता देखा है,

मैंने जिंदगी के साथ-साथ 

रंग जमाने को बदलते देखा है,

वक्त के साथ-साथ न जाने 

मैंने क्या-क्या नहीं देखा है,

जवानी में खून की गर्माहट के साथ 

जो सिंहों की दहाड़ मारता था

आज उनकी भी आवाज को 

लड़खड़ाते देख रहा हूँ,

जब वो चलते थे तो शेरों की तरह 

पर आज......,

आज लकड़ी के सहारे से चलते 

पांव उनके लड़खड़ाते देख रहा हूँ,

उनकी आंखों में वो दहशत थी 

देख कर लोग डर जाते थे,

पर आज........,

उनकी आंखों में बारिश की तरह 

बरसते देख रहा हूँ,

उनके हाथों में ताकत थी 

जो पत्थर को पिघला देते थे,

पर आज.....,

उनके हाथों को पेडों के पत्तों की तरह  

कंपकपाते देख रहा हूँ,

उनकी आवाज में भी 

शेरों की दहाड़-सी लगती थी

पर आज......,

उनकी जुंबा पर चुप्पी की 

सील लगी हुई देख रहा हूँ,

ये ताकत-ये दौलत और ये जवानी भी 

ऊपर वाले कि ही देन है,

इन सबके होते हुए भी 

ये इंसान को मैंने मजबूर देखा हूँ,

अपने ताकत-दौलत और जवानी पर 

इतना भी गुरुर सही नहीं है,

समय की रफ्तार में 

बड़ों-बड़ों को बहता देखा है,

भगवान ने दी है 

ताकत-दौलत और जवानी तो

किसी दूसरे का भला कर सको तो करो,

इन तीनों के गुरुर में लोगों को 

सताते तो बहुत देखा हूँ,

क्योंकि.......?

इस धरा पर ही धारण किया है सब तुमने,

धर्म-दया और उपकार में लगाओ तुम इनको,

वरना.......!

इस धरा पर सब धरा का धरा ही तुम्हारा रह जायेगा !!

      


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