STORYMIRROR

हरि शंकर गोयल "श्री हरि"

Others

4  

हरि शंकर गोयल "श्री हरि"

Others

क्या बदला

क्या बदला

2 mins
147

आज सुबह सुबह रसिकलाल जी मिल गए

हमें सामने देखकर 

गुलाब की मानिंद खिल गए 


कहने लगे कि आजकल 

बिल्कुल नजर नहीं आते हो 

किस बिल में घुसे रहते हो 

ना आते हो ना जाते हो 


अच्छे दिनों के इंतजार में 

हम तो बरबाद ही हो गए

छप्पन इंच के सीने में 

ना जाने कहां खो गए 


इन सात वर्षों में एकदम 

ठहराव सा आ गया है 

हमें तो नहीं लगता है कि 

कोई बदलाव भी आ गया है ।


उनकी व्यंग्यात्मक बातें सुन 

हमारे लबों पे मुस्कान छा गई

"सावन के अंधे को हरा ही सूझता है" 

यह बात हमारे ध्यान आ गई 


जिस लाल चौक पर तिरंगा प्रतिबंधित था

वह लाल चौक तिरंगी रोशनी में नहाया है 

इससे बढ़कर और क्या बदलाव होगा कि

एक आतंकी के अब्बा ने तिरंगा फहराया है 


जहां गोलीबारी और पत्थरबाजी 

सरेआम हुआ करती थी 

लड़कियां भी बुरके में रहकर 

पत्थरबाजी किया करती थीं 


वो सभी लोग अब धीरे धीरे

मुख्य धारा में आ रहे हैं 

जो कभी अलगाव के गीत गाते थे 

वे अब "जन गण मन" गा रहे हैं 


उत्तर पूर्व के कुछ प्रदेशों में आज तक

विधानसभा में तिरंगा नहीं लहराया था

अब वहां पर भी तिरंगा लहराता है 

और बतायें कि क्या बदलाव आया था 

 

गांव गांव में शौचालय बन गए 

माताएं बहनें दिल से दुआएं दे रहीं हैं 

जो कभी इंतजार करती थी रात का 

वो अब दिन का भी सदुपयोग कर रही हैं 


कल तक विदेशों पर आश्रित रहते थे

अब धीरे-धीरे हम आत्म निर्भर हो रहे हैं 

चूल्हा फूंक फूंक कर काले पड़े घर 

अब "उज्जवला गैस" से रोशन हो रहे हैं 


पड़ोसी देश जो आतंक की फैक्ट्री था 

अब भीख का कटोरा लेकर घूम रहा है 

चीनी चाचा की चंपी कर रहा है और

अमेरिका से डांट फटकार खा रहा है


सभी सांप संपोले बिल से निकल रहे हैं 

बिच्छू डंक उठाकर बेनकाब हो रहे हैं 

मीडिया की खाल ओढ़े बैठे थे जो गिद्ध

वे सब अब एजेंडा बाज सिद्ध हो रहे हैं 


कभी बॉलीवुड में "लव जिहाद"

बड़ा पसंदीदा विषय हुआ करता था 

अब राष्ट्रवाद पसंद किया जा रहा है 

अच्छे अच्छे दबंगों, किंगों, दंगल वालों को 

भी भरी सर्दी में पसीना आ रहा है । 


गुंडे और मवाली खुद जेल आ रहे हैं 

अवैध साम्राज्य गिराए जा रहे हैं 

जहां कहीं "मकान बिकाऊ है" लिखा था 

वहां लोग अमन चैन से रोटी खा रहे हैं 


इतना पर्याप्त है या और बताएं 

विश्व में बढ़ती ताकत की क्या झांकी दिखाएं 

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में पहली बार

अध्यक्ष बने हैं , क्या ये नहीं बतलाएं ? 


हमारी बातें सुनकर 

रसिकलाल जी भाग खड़े हुए 

लगता है कि अब खानदानों के 

"अच्छे दिन" शायद विदा हुए ।



Rate this content
Log in