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Shraddhanvita Tiwari

Others

4.8  

Shraddhanvita Tiwari

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कविता का जन्म

कविता का जन्म

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एक औरत

देर साँझ घर पहुँचती है

उतार फेंकती है दर्द

अपने गरीब आँचल से

बुहारती है सपने

घर के आँगन से

सिल कर रख देती है खुशियाँ

अपने बच्चे की लंगोट पर

बुनती है पक्के रिश्ते

कच्ची दीवारों के भीतर

टांग देती है भविष्य की उलझनें

टूटते से खूँटे पर

और बंद कर देती है लड़कपन

खाली डिब्बों में

पूरे ज़ोर के साथ

अगली सुबह

जन्म लेती है

एक कविता


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