कुछ तजुर्बे जिंदगी के
कुछ तजुर्बे जिंदगी के
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कुछ तजुर्बे जिंदगी के हमें मुँह जुबानी याद है
थी कभी धूप खुशनुमा अब शाम भी बरबाद है
ना कारवां ना मंज़िल ना ही पुरानी पहचान है
है चलती फिरती लाश कि आदमी भी नाबाद है
खुश्बू भीगे गेंसुओं की ज़ेहन में मेरे बस गयी है
है नहीं तू पास हमारे, फिर भी दिल आबाद है
वो मासीहाई बांकपन था या थी मेरी मुहब्बत
लिखा जब तुझ पर मैनें लफ़्ज़ लफ़्ज़ फवाद है
शोर बरपा तितलियों का फिर सूने आँगन में
सुने तो मीठी धुन और समझे तो शिवनाद है
