कर्ण
कर्ण
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गांडीव है क्लेश से भरा , जनक ही मेरा सूत्र है
अच्छुती है प्राक्त मे , पर मन मेरा पवित्र है.
निष्ठा का संकेत हूँ , कुंती का सुपूत मैं,
पांडवो को जो चीर दे , वो तिलस्मी विद्युत मैं.
वचन बद्ध शूरता , सृष्टी का प्रमाण हूँ ,
आंधी धरे जो तीर पे , वो सर्व शक्तिमान हूँ .