कोई कैसे भूल सकता है
कोई कैसे भूल सकता है
जब मैं छोटी थी ,
शत भर सोती थी,
शत भर वो जागते थे,
आज भी जब सोती हूँ
उनकी नींद उड़ जाती है,
खुद के सपने को
दो समय के दाने में
सिमित रख कर जो आदमी
मेरे लिए ख्वाब देखता है ,
उनके त्याग को कोई कैसे भूल सकता है.....(१)
जब दुनिया मुझे बोझ कहती थी,
जब दुनिया को मैं रोज सहती थी,
पर उन्होंने मेरे पर काटने नहीं दिया
जमीन से जुड़े रहकर
आसमान में उड़ना सिखाया,
उनके वजह से हर रोज नए सपने
मुझे दिखता है,
उनके त्याग को कोई कैसे भूल सकता है.....(२)
खुद के परेशानी को जो
मुझ से हर पल छिपाया,
खुद के पसीना को जो
मेरे लिए आज और कल बहाया,
जिनके वजह से मेरे पैर रास्ते पर चलते है
और मेरे आंख मंजिल की करीब से देखती है,
उनके त्याग को कोई कैसे भूल सकता है .....(३)
खुद सरल रह कर
दुनिया के जटिलता को समझाया,
बड़े बनने से पहले अच्छा होने की
जरूरत को महसूस करवाया,
जिनकी वजह से संस्कार का बुनियाद
आज सशक्त हो पाया है ,
उनके त्याग को कोई कैसे भूल सकता है .....(४)
खुद पर्दे के पीछे रह कर
मुझे पढ़ना और बढ़ना सिखाया,
कठिनाइयों से आंख मिलाकर लड़ना सिखाया,
जिनकी वजह से दुनिया हाथ से कलम ना छिन पाया,
जिनकी वजह से मेरे हाथ आज भी लिखती है ,
उनके त्याग को कोई कैसे भूल सकता है .....(५)
हां मुझे उनसे दूर होने का डर है
उनका जगह कोई नहीं ले सकता,
ऐसा मेरा दिल का घर है
तुम पराई हो कह कर पापा मुझे
खुद से दूर ना करना,
यह कह कर आप मुझे मत डराना
कोई उनसे पराई कैसे हो सकती है ,
जब उनके वजह से दुनिया तुम्हें पहचानती है ,
उनके त्याग को कोई कैसे भूल सकता है
उनके त्याग को कोई कैसे भूल सकता है .....(६)।