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Vivek Sharma

Others

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Vivek Sharma

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ख्वाब!

ख्वाब!

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दिल में ख्वाब लिए सोता है वो,

फिर हर सुबह का सामना कर दिल को खोता है वो !

कहने की हिम्मत जुटा के आगे बढ़ता है वो ,

फिर उसकी आँखों को अपनी ओर

देखते देख दिल को संभाल नहीं पाता है वो !

खुद को आशिक़ कहके ,

डरता काफिर की तरह है वो !

सोचता कुछ नहीं ,

खुशी में सब बोल देता है वो !

फिर उसके रोने पे उसको हंसाता है वो,

रोज़ रात अँधेरे से डर के फिर अकेला बैठ रोता है वो !

दिल में ख्वाब लिए सोता है वो,

फिर हर सुबह सच्चाई का

सामना कर दिल को खोता है वो !

उसे गिरता देख हाथ आगे बढ़ता है वो ,

खुद गिरता है मगर दिखता नही है वो !

अक्सर दिल को समझाता है वो,

फिर उसके सामने आते ही दिल के

आगे हार मान लेता है वो !

खुद को आवारा पंछी बताता फिरता है वो,

फिर हर रात खुद को उसकी

यादो के पिंजरे में कैद पता है वो !

दिल में ख्वाब लिए सोता है वो,

फिर हर सुबह सच्चाई का सामना

कर दिल को खोता है वो !

कहता है दिल प्यार के आगे

सच्चाई को भूल जाता है,

फिर आपने ख्यालों में

उसको अपना बना लेता है !

कहता है दिल ही हार जाएगा

तो दिमाग भी काम नहीं कर पाएगा,

इसलिए दिल को ख्यालो की

झूठी डोर में लपेट लेता है वो !

दिल में ख्वाब लिए सोता है वो,

फिर हर सुबह सच्चाई का

सामना कर दिल को खोता है वो !


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