कहीं प्रेम वाला रिश्ता तो नहीं
कहीं प्रेम वाला रिश्ता तो नहीं
वो
हंसना
वो
मुस्कुराना
वो
खिलखिलाना
वो
बात-बात पर ही
रो देना
अगले ही पल
मान भी जाना
ये तुम्हारे
अंदाज
मुझे
अच्छे
लगते हैं
बहुत ही
अच्छे
लगते हैं
तुम्हारा
अपलक
यू हीं
मुझे
देखते
रहना
मेरे द्वारा
चोर
निगाहों से
निहारते
रहना
तुम्हारे
आंखो के
आंसू में भी
समर्पण
तुम्हारे
मुस्कुराहट
में भी
स्नेह
तुम्हारे
लफ्जों
में भी
इश्क
की चुभन
तुम्हारी
हर अदा
पर
मैं फिदा
तुम हीं
मेरी जहां हो
तुम ही
मेरी
सर्वस्व हो
तुम हो
तो मै हूं
तुम नहीं तो
मैं भी नहीं
तुम्हारे
मेरे साथ
होने मात्र से
तृप्त हो जाना
सुकून का
अहसास होना
रोम रोम में
सुख का
स्पंदन
हो जाना
पता नहीं
तुम्हारे से
मेरा कैसा
है रिश्ता
सब रिश्ता से
वजनी लगता है
यह अनाम रिश्ता
कहीं
प्रेम का तो
नहीं है न रिश्ता।
