"ख़्वाहिशों के जंगल"
"ख़्वाहिशों के जंगल"
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जंगल ही जंगल है चारों तरफ़
कहीं ख़्वाहिशों के तो कहीं साज़िशों के।
रोज मैं ढूँढ कर लाती हूँ एक उम्मीद,
रोज़ एक आरज़ू का ख़ून हो जाता है।।
जाने कहाँ कहाँ ना माँगी मुरादें ,
फिर भी कुछ मिलने से पहले ही छूट जाता है ।
चाह नहीं है कि पूरा आसमान हो जाऐ मेरा,
छोटी सी ज़मीं यह नादान दिल माँगता है।।
तमन्ना है जीने की ज़िन्दगी को ,
और काम यह बहुत मुश्क़िल हुआ जाता है ।
रोज़ कोशिश करती हूँ ख़ुद को सहेजने की ,
रोज़ दु:ख खैर से आबाद हुआ जाता है।।