कब आगे राम
कब आगे राम
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पत्थर हुई अहिल्या, अब तो लौट के आओ राम
ठोकर ही मारोगे फिर भी, इंसां तो बनाओ राम।
गली-गली में हर मोड़ पे, घूम रहे हैं कितने रावण
सिसक रही हर घर में सीता, आके जरा बचाओ राम।
पहले रावण के दस सिर थे, अब तो रावण लाखों हैं
कैसे उनका नाश करोगे, ये भी जरा बताओ राम।
बुझ रहा इंसाफ़ का सूरज, खलनायक अब नायक हैं
नाम तुम्हारा बेच रहें जो, उनसे डरो, छिप जाओ राम।
उबल रही गुस्से में जनता, ना आए तो पछताओगे
मुठ्ठी तान बगावत कर दी, तब कहां जाओगे राम?
