जज़्बात!
जज़्बात!
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थोड़े अनजान थोड़े खास है,
ये जज़्बात बड़े ही पाक है।
लाख कोशिश की
मिटाने दबाने की
कुछ फायदा नहीं
शायद कोशिश ही नापाक है
कोई बहाना चाहिए
सब सुनना चाहिए
बस एकदम चुपचाप
शिकवे जो अपने है, खास है
ये जज़्बात बड़े ही पाक है।
बहुतेरे आए और आते जाएंगे,
भरोसा भी जीतते ही जाएंगे।
पर जरूरत पर
अकेले होने पर
जब कंधा चाहिए
कुछ नहीं पता कहाँ चले जाएंगे
फिर रोना होता है
संभालना होता है
खुद से ही खुद को
अकेलेपन में एक आस है
ये जज़्बात बड़े ही पाक है।
मेरे शब्दों को उतरना नहीं था,
कभी कागज़ पर गढ़ना नहीं था।
बस सुन लेता
कोई समझ लेता
भीतर की व्यथा
वर्ना लिखना कभी पसंद नहीं था
हो चाहे मीची-मीची
सांसे हो भींची-भींची
छुपाना नहीं पड़ता
अब सुनने को कोई पास है
ये जज़्बात बड़े ही पाक हैi
