ज़िन्दगी
ज़िन्दगी
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ऐ ख़ुदा यह कैसा दस्तूर ए ज़िन्दगी है
चाहत ऐसी की पूरी ज़िन्दगी है।
चाह मुकम्मल नहीं दस्तूर ए मआशरे से
ख़त्म कर दो दस्तूर यह, मेरी ज़िन्दगी है
फ़ैसला नहीं कर पाता तू लोगों के डर से
ख़ौफ़ ए ख़ुदा दिल में हो पता नहीं कल ज़िन्दगी है
जो बात दिल में है उसे न रख तू पोशीदा
कहतें है मशवरे से बनती ज़िन्दगी है
चाहता है जो पाले उसे कोशिश से, फिर
गिला न करना कि निदामत भरी ज़िन्दगी है