जान बूछ के विपदा मत बुलाओ
जान बूछ के विपदा मत बुलाओ
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हरकते थे नादान भरी
मन मंदिर में शैतानियत थी भरी
एक दिन दोस्तों के सांग
बड़ी प्यारी मस्ती सूझी
रेल की पटरियों में करनी थी
दबंग कारनामें थोड़ी
हालातों से बेखबर
जोश में हुए मदहोश
एक एक करके कारनामें
पटरियों में हुए खामोश
अपनी जब बारी आयी
जोश से पटरी पे कूद पड़े
रेल के सामने आ खड़े
रोक ठोक किसी का ना माने
बिगड़े हुए को कौन समझाए
तकदीर की बेरहमी देखो
पटरी से हम निकल ना पाए
घबराहट में हुए बेहाल
जैसे भी करके निकलना
चाहते थे फिलहाल
जान बूझकर विपदा बुलाई
कुछ ना समझें
कस कर जोर लगाई
रब का शुक्र मनाओ
पटरी से निकल पाया
एक सिख जो मुझे मिली
जान बुझ कर विपदा बुलाओगे ते
पछताना पड़ेगा खाली पीली..
