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Dharmendra Singh

Others

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Dharmendra Singh

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जाग मुसाफ़िर, सवेरा हो रहा है..

जाग मुसाफ़िर, सवेरा हो रहा है..

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नव कुसुम खिल उठे हैं,

सुंगध फैली है चहुँ ओर देख,

जीवन के हर एक क़िस्से को,

साकार कर ले... पर ना जाने?

तू क्यों सो रहा है?

जाग मुसाफ़िर, सवेरा हो रहा है।


मन में समाई स्मृतियों को,

वास्तविकता में परिवर्तित कर दे,

विजय प्राप्त हो हर दिन तुझको,

कार्य कुछ ऐसा प्रारंभ कर... किस सोच में है?

तू क्यों सो रहा है?

जाग मुसाफ़िर, सवेरा हो रहा है।


चमक उठे दिनकर की भाँति,

शीतलता हिमकर सी रखना,

स्थिर हो जाना सफल शिखर पर,

चमकते हुये तारों के समान....क्या शंका है?

तू क्यों सो रहा है?

जाग मुसाफ़िर, सवेरा हो रहा है।


किस चीज़ का अभाव है तुझे और किसकी आस है?

घृणास्पद है तू! दुनिया के लिये

अपनी एक पहचान बना,

तभी प्रिय होगा सबके हृदय में.... ये क्यों भूल गया?

तू क्यों सो रहा है?

जाग मुसाफ़िर, सवेरा हो रहा है।


क्यों समझता है अयोग्य ख़ुद को?

क्या कमी है तुझ में? कोई नहीं...?

सामर्थ्य है, लगन है तुझमें,

अद्वितीय है तू! इस संसार में...चल उठ!

तू क्यों सो रहा है?

जाग मुसाफ़िर, सवेरा हो रहा है।


अपार यश फैले तेरा जग में,

विविध प्रकार से नाम हो तेरा

सबलों के तू साथ बढ़,

निर्बलों पर उपकार कर... किस सोच में है?

तू क्यों सो रहा है?

जाग मुसाफ़िर, सवेरा हो रहा।



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