इंसान
इंसान
हैं वो घर की लक्ष्मी पर
वही है घर का बोझ...
दोगले हैं समाज के नजरिये
बताओ कौन सा है ये ढोंग...
कहते है मर्द अपने आंसू दिखाते नहीं
औरतें भी तो गम दिखाती नहीं...
यूं तो रोने की ऑटोमॅटिक मशीन कहलाई जाती हैं
उनके सिर्फ आंसू मत देखिए जनाब
वह अंदर से दिल को दबाए जाती है...
औरत ही सुख और विनाश का प्रकोप है,
औरत ही ईश्वर की सबसे सुंदर रचना है,
ये दोनों पहलू मेल ना खाये...
जान क्यूं औरत पर दुनिया उंगली उठाये...
मंदिर में माता को पूजा करते है,
घर में औरत को कोसा करते...
वो गलती करती है, यह गलत तो नहीं,
हर इंसान सही हो ये सच तो नहीं ...
हाँ होगी खामियाँ उसमें भी कई,
वो इंसान है कोई मूरत तो नहीं...
हर आवाज पर भागते हुए चली आती,
वो औरत ही तो है जो मकान को घर बनाती है....
जरा खोजो तो एक सच्चाई की...
क्यूं न जाने इंसान अमृत की शीशी में,
विष का व्यापार करते है...
