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हयात का सफ़र

हयात का सफ़र

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हयात की शुरुआत तो आसान थी 

क्योंकि बचपन बड़ा मासूम था 

जहाँ कागज़ की कश्ती जहाज़ थी

और अत्फ़ से बना आदिल

आशियाना था । 


कलेवा कर चल पड़ते थे 

उस विद्यालय की ओर 

अकेले नहीं अपनी टोली संग 

मचा दिया करते अक्सर 

हुड़दंग चहूँ ओर।


गुजर गया बचपन मस्ती में  

बड़ों के अश्फ़ाके पर, 

प्रश्न जरूर आया होगा- 

क्या यही था सफ़र?


जिंदगी का पैगाम आया -

अब हो जाओ जिन्ह़ार! 

नसीब में सबके नहीं हूँ मैं 

जरा कर लेना तसव्वुर।


त्यागने पड़ते हैं आरज़ू और छंद 

बनने के लिए अर्जमन्द,

आया जो जिंदगी का प्रस्ताव  

कर गया शामिल अपनी

खिदमत में ।


सफ़र की शुरुआत तो तब हुई 

जब मुलाक़ात हुई मुसाफ़िरो से 

जिनकी मंज़िल तो एक थी 

पर राहों में अंतर था। 


जिंदगी तो थी पर 

आसरा नहीं था 

एहतियाज तो थी पर 

एहतमाम नहीं था । 


कान भी स्वयं की 

असकाम़ सुनते रहे 

इताब तो खूब आता 

पर फिर भी, 

एहसान समझ कर

झेलते रहे ।


लोग शराब के खुमार में 

धुंध थे और यहाँ, 

अब्सार आब- ए-चश्म 

छलका रहे थे ।


खुद की मेहनत पर 

कभी गुमान नहीं किया 

क्योंकि खुद का अश्फ़ाक 

मैं स्वयं ही था ।


एक दिन कहा जिदंगी ने मुझसे,- 

'क्यों तू मुझसे शिकायत

नहीं करता?

क्यों तू

छोटी उपलब्धियों में 

खुर्रम होता?

क्यों तू नामुमकिन को है चाहता

जब तेरा कोई नाम ही नहीं होता?' 


मैंने कहा- 

क्या फ़रियाद करूँ मैं उससे 

जो हर किसी के नसीब में नहीं, 

क्यों न होऊँ प्रसन्न मैं उनमें 

जो होता नहीं मुकम्मल 

हर किसी को ।


अर्थ वही है 

समझ नहीं है ,

नामुमकिन नहीं 'नाम '

'मुमकिन' होता है 

निर्भर करता है कौन 

कैसे समझता है?


क्या फ़रियाद करूँ मैं तुझसे 

जिसके पास भीड़ कम नहीं 

शिकायत करने वालों की 

जो तुझसे यह कहते हैं- 

थक गए हैं तेरी खिदमत से 

जो आतिश के अंगारों पर 

चलाती है, 


आराम नहीं है काम बहुत है 

नींद मुकम्मल नहीं हो पाती।

ए जिंदगी तू उनको

तख़्त पर नहीं कब्र में 

मुकम्मल नींद सुला देती ।


तूने जो दिया वो कम नहीं 

तो फ़रियाद कैसे करूँ?

सफ़र मुकम्मल हो जाए 

यही आरज़ू है मेरी ।"


शब्दकोष:


अत्फ़: प्रेम ; आदिल : सच्चा ; 

आशियाना: बसेरा, घर; कलेवा:सुबह का जलपान;

अश्फ़ाक:सहारा; जिन्ह़ार:सावधान;

तसव्वुर:विचार; अर्जमन्द:महान;

खिदमत:नौकरी; एहतियाज:आवश्यकता;

एहतमाम:व्यवस्था; असकाम़:बुराईयां; 

इताब:क्रोध; खुमार: नशा; 

अब्सार: आँखे; आब-ए-चश्म : आँसू; 

गुमान: सन्देह; खुर्रम: प्रसन्न; 

फ़रियाद: शिकायत; आतिश: आग ; 

आरज़ू: इच्छा ।




 


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