हरघड़ी
हरघड़ी
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जलता चाहत का दिया है हरघड़ी,
दिल में तू ही तू मिला है हरघड़ी।
काम मेरा और क्या है हरघड़ी?
नाम तेरा ही लिया है हरघड़ी।
दर्द देता है मिरा ही मन मुझे,
ख़्वाहिशों का काफ़िला है हरघड़ी।
मुझ से ये उम्मीद ज्यादा मत रखो,
कौन जख्मों को सिया है हरघड़ी?
जिस ने मेरा साथ छोड़ा ही नहीं,
कोई और नहीं पिता है हरघड़ी।
ज़िन्दगी में ज़िन्दगी ही ना रही,
वक्त तेरे बिन बिता है हरघड़ी।
सच कहूँ तो मैं नहीं हूँ बेगुनाह,
खून सपनों का किया है हरघड़ी।
जिसने मेरी मौत को खुद पे लिया,
'अक्ष' आँखों में चिता है हरघड़ी।
