होली का उपहार
होली का उपहार
रंग उड़े, और उड़े अबीर गुलाल
घुली हवाओ में मस्ती की फुहार।
अब की पिया होली खेलू, तुम संग जी भर के…
सुधबुध खोई , रंगी प्रीत के रंग में
आज मोहे पिया मिलन की आस ..
रंग उड़े ,उड़े अबीर गुलाल।
रंग दो ऐसे रंग से साँवरे मोरी चुनरिया
जो चढ़े रंग तो फिर ना उतरे ,तुम पे बसे है ,मेरे प्राण।
राधा कहे कन्हैया से ,सुनो यशोदा के लाल
सात रंगो से रंग तो मोहे कुछ ऐसे
हर रंग बने जाए, प्रीत भरा उपहार।
एक दृष्टि जो मुझ पर डारो।
लाज से सुनो गुलाबी हो जाए ये गोरे गोरे गाल।
नीले पीले है प्रिय रंग तुम्हे
इन रंगो के पुष्पों का उपहार जो मिले तुमसे ...
करूँगी में इनसे आज सिंगार ..
सिंदूरी साँझ में छेड़ाे जो तो तुम मुरली की मधुर तान
मंत्रमुग्ध सी खींची चली आँऊ में ,ओ नन्द के लाल।
झूमे हरी भरी प्रकृति खिली कलियाँ..
भँवरे करते गुंजारे ..तुम हो देवकी के दुलारे
मध्य एक लाल रंग ही शेष है।
लाल चुनरिया प्रीत की दे दो ,तुम उपहार
तन ,मन धन तुम पर सब मैंने दिये वार।
प्रेम विशेष, है अपना पवित्र बंधन
जाने माने ये तो सारा संसार।
उड़े रंग ,उड़े अबीर गुलाल
राधा रानी संग होरी में रास रचाये गिरधर गोपाल।
