हलधर
हलधर
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पड़ा पड़ा हल जंग खा गया हलधर का।
आए चुनाव ख़याल आ गया हलधर का।।
उसके हिस्से का पानी तो फैक्ट्रियों में पहुँचाया
पानी की किल्लत है, उसको बस ये बतलाया।
माँगता है वो हक अपना तुमसे कोई खैरात नहीं
पर ना जाने हक कौन खा गया हलधर का।।
ना मंडी में भाव पर्याप्त हैं ना ही लागत मिल पाती
चुक जाता कर्ज़ तो बगिया उसकी भी खिल पाती।
हर बार सियासी संग्रामों में याद उसकी आ जाती
हर दल को ही ये मुद्दा भा गया हलधर का।।
वो करता रहा गुहार सरकारों से कर्ज माफ़ी की
जब सब बेकाबू लगा तो अपनाई राह फाँसी की।
वो लगाकर बन्धन गर्दन पर तरुशाखा से झूल गया
फिर खबरों में है त्याग छा गया हलधर का।
