हिन्दी भाषा
हिन्दी भाषा
भारतवर्ष के मस्तक पर, जैसे शोभित ऊंचा हिमालय है
सब भाषाओं को सुशोभित, करती वैसे हमारी हिन्दी है
वर्णों का विशुद्ध विस्तृत हार,शब्दों का अलौकिक भंडार,
अलंकारों छंदों में बातें करती,भाषा को रसमय बनाती हिन्दी
वेद पुराणों की भाषा, ऋषियों मुनियों की अविरल वाणी
संस्कारों का बोध कराकर ,नैतिकता सिखलाती हिन्दी
कभी गीत गजल बन जाती,कभी परियों की कहानी सुनाती
मात्राओं का ज्ञान कराकर, व्याकरण से शुद्ध होती हिन्दी है
सरस मधुर इसकी बोली, जैसे कानों में जैसे मिश्री घोली
सबको अपना मीत बनाकर,स्वयं में आत्मसात करती हिन्दी
सबको एकसूत्र में बांधकर यह,अखंडता का पाठ सिखलाती
बनकर हार जन-जन के हृदय का, प्रेम सुधा रस यह बरसाती
अभिव्यक्ति का सशक्त माध्यम, हमारी संस्कृति की पहचान
ध्वज पताका फहराकर क्षितिज में, विश्व गुरु बन जाए हिन्दी
जन जन की पहचान यही है,मेरे भारत का अभिमान यही है
ज्ञान ध्यान चिंतन मनन साधना, हम सबका स्वाभिमान हिन्दी।
