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गज़ल

गज़ल

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गज़ल- 1

यूं होता रहा ये सफ़र ज़िंदगी भर

मयस्सर हुई कब डगर ज़िंदगी भर

मुहब्ब्त का तुमने इशारा किया था
लगी आग देखो इधर ज़िंदगी भर

चलो अब चलें दूर ढूढ़ें ठिकाना
इक जगह न रहना ठहर ज़िंदगी भर

सिकंदर यहाँ आते जाते रहे हैं
किसी का हुआ कब ये घर जिंदगी भर

यहाँ ज़ुल्मतों नफ़रतों के हैं मौसम
कि जीने न देगा ये डर ज़िंदगी भर

जो दिल से ये तूने दुआ मुझको दी है
रहेगा वो मुझ पर असर ज़िंदगी भर

यही इक तमन्ना किये जा रहा हूं
मयस्सर हो तेरी नज़र ज़िंदगी भर

न लैला की बातें न मजनू के किस्से
सुनो "गीत" की अब खबर ज़िंदगी भर


गज़ल- 2
*****
मुस्कान तुम्हारी ने, हर दर्द मिटाया है
पर सच भी यही तो है, इसे तुमने जगाया है

हम चाँद को चूमेंगे, धरती पे कदम रखकर
इन आँखों मे सपनों को तुमने ही सजाया है

हम तो खुश रहते हैं, अपनी ही फ़क़ीरी मे
यह जान ओ जिगर सब कुछ, तुम पर ही लुटाया है

जीने की नही चिंता, मरने की फ़िकर क्यूं हो,
जब हम पे नज़र तेरी, और तेरा ही साया है

आने को तो आते हैं, और आ के गुज़रते हैं
तूफाँ के सितम से भी, तुमने ही बचाया है

दिल की हर धड़कन में, बस प्यार की सरगम है
अब गूंज रहे नगमे, हर साज़ बजाया है

अंदाज़ मुहब्बत का, हमको तो नही मालुम
न तो हमने कभी पूछा, न ये तुमने बताया है

हर रस्म नयी दिखती, बस प्रीत पुरानी है
सुन "गीत" तुझे उसने, संगीत सुनाया है ।


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