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एक पैग़ाम

एक पैग़ाम

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मेरा पैग़ाम तो तुझ तक पहुँचा होगा,

जब ख़त तूने मेरा खोला होगा,

आँखों से आँसू तो छलके होंगे,

जब आखिरी सलाम मेरा पढ़ा होगा,

छोड़ दिया मैंने इंतेज़ार करना अब,

तुझे अब ये समझ आ गया होगा,

रूह में उतर गया था जो इश्क़ तेरा,

उसे कतरा कतरा अब ढलना होगा,

मैं तो छोड़ चली हूँ राहे-ज़िंदगी में तुझे,

अब अकेले ही ये सफ़र तय करना होगा,

याद तो आऊँगी मैं तुझे हमेशा ही,

याद रख पर तेरे आँसुओं के सैलाब को रुकना होगा,

पत्थर दिल को तेरे मोम न बना सकी मैं कभी,

पर अब पल-पल उसे जल के पिघलना होगा,

रूह तेरी पुकारेगी मुझे पर मैं सुन न सकूँगी,

तेरी आवाज़ को अपना रुख़ बदलना होगा,

तूने जो गिराई हैं बिजलियाँ मुझ पे,

ज़रा गौर करना उनकी तपिश में अब तुझको जलना होगा,

मोहब्बत कभी न मिटी है न मिट पाऐगी कभी,

तुझे मगर मुरझाकर भी खिलना होगा,

गुरूर तो टूटेगा एक दिन तेरा, ओ साक़ी!

क्योंकि आदमी है तूझे मिट्टी में मिलना होगा,

उस दिन मेरा ये ख़त पढ़ना निकाल कर तू,

जब तुझे ज़िंदगी छोड़ मौत की राह पे चलना होगा,

मेरे ख्याल तुझे जीने भी नही देंगे, तड़पेगा तू,

मौत के जिस अज़ाब से मैं गुज़र रही हूँ, तुझे भी गुज़रना होगा,

जैसी तलब थी तेरी मोहब्बत की मुझे ओ दिलबर,

तुझे भी अब उसी तरह मेरा तलबगार बनना होगा । 

 

#राखीशर्मा


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