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Sudhir Srivastava

Abstract

4  

Sudhir Srivastava

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दो लफ्ज

दो लफ्ज

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दो लफ्जों की अहमियत कितनी है

आप सोचिए इस बात की कितनी समझ है आपको ह।

मानते हैं न कि दो लफ्ज ही हैं

जो फूलों की बारिश करा सकते हैं

और दो लफ्ज़ ही कत्लेआम करा सकते हैं।


दो लफ्जों की माया महान है,

अंजान अपरिचितों में भी भाईचारा बना देते हैं

और ये दो लफ्ज़ ही हैं जो भाई भाई में

बंटवारा करा सकते हैं।


दो लफ्जों का मसला इतना भर है प्यारे

जो घर परिवार, समाज, दो समुदायों धर्मों में 

बेवजह आग भी लगा सकते हैं

और तो और ये दो लफ्जों का ही कमाल है

जो जलती आग बुझा शान्ति की बारिश करा सकते हैं।


दो लफ्जों को महत्वहीन न समझना मेरे भाई

ये किसी के जीवन में अंधेरा

तो किसी के जीवन में 

रोशनी का भंडारण कर सकते हैं।

कहने को तो दो लफ्ज़ हैं

पर ये हैं बड़े काम के प्यारे

आप जैसा चाहें इनका उपयोग कर सकते हैं,

अथवा इन्हें बदनाम कर सकते हैं

या इन्हें सिर माथे भी लगा सकते हैं

हम क्या कहें दो लफ्जों की अहमियत 

आप स्वयं ही समझ सकते हैं। 


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