दिसंबर
दिसंबर
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दो साल का दिसंबर बीत गया
वक़्त बचपन का प्रीत लील गया
मुखड़ा देख वो हँसती थी
हँसता उसको देख मन मुस्काता था
छम छम की धुन पर आंगन वो गुनगुनाता था
सर्द हवा समेट उसे दूर ले गया
दो साल का दिसम्बर बीत गया
वक़्त बचपन का प्रीत लील गया
शामें उजली होती थी
घर में किलकारी गूंजती थी
खन खन चूड़ियाँ घर में सरगम लाता था
बुझता सूरज समेट उसे दूर ले गया
दो साल का दिसम्बर बीत गया
वक़्त बचपन का प्रीत लील गया
पलकों पर इंतज़ार बसता था
जीवन के रंगों का सार मिलता था
आंचल उड़ उड़ के स्नेह रंग बरसाता था
सब रंग समेट रात रंग स्याह दे गया
दो साल का दिसम्बर बीत गया
वक़्त बचपन का प्रीत लील गया