दे दो पुरानी पेंशन हमारी
दे दो पुरानी पेंशन हमारी
जीकर देखो एक बार तुम जिन्दगी हमारी...
कर दोगे तुम भी पुरानी पेंशन की बहाली...
अगर मैं सिपाही हूँ,
करता हूँ रखवाली घर अपना छोड़कर तुम्हारी...
चाहे तुम्हारा रोड-शो हो या हो विदेश यात्रा की तैयारी...
दे दो पुरानी पेंशन हमारी...
जीकर देखो एक बार तुम जिन्दगी हमारी...
कर दोगे तुम भी पुरानी पेंशन की बहाली...
अगर मैं शिक्षक हूँ,
पढ़ाता हूँ बच्चों को तुम्हारे,
अच्छा इंसान बने पूरी कोशिश के साथ
हमारा भी बुढ़ापा कटे अच्छा...
दे दो पुरानी पेंशन हमारी...
अगर मैं डाक्टर हूँ, करता हूँ इलाज,
कोरोना जैसी महामारी में भी
जान तो सबको रहती है प्यारी
अपनी जान की बाजी के बदले,
दे दो पुरानी पेंशन हमारी...
जी कर देखो एक बार तुम जिंदगी हमारी...
कर दोगे तुम भी पुरानी पेंशन की बहाली...
अगर मैं फौजी हूँ,
करता हूँ रक्षा खुद से पहले तुम्हारी...
दुश्मन तुम तक ना पहुँचे यह कमान हमने संभाली
अगर देश से तुम्हें प्यार है तो...
दे दो पुरानी पेंशन हमारी...
जी कर देखो एक बार तुम जिंदगी हमारी...
कर दोगे तुम भी पुरानी पेंशन की बहाली...
देश की सेवा मैं चाहे जिस रूप में करूँ
हमारी सेवाओं के बिना क्या
पहचान है तुम्हारी...?
फिर क्यों मेरी अंतिम साँस की पूँजी तुम पर पड़ती है भारी...?
दे दो पुरानी पेंशन हमारी...
जी कर देखो एक बार तुम जिंदगी हमारी...
कर दोगे तुम भी पुरानी पेंशन की बहाली...
दे दो पुरानी पेंशन हमारी...
दे दो पुरानी पेंशन हमारी...
स्वरचित-सोनाली तिवारी "दीपशिखा" (एक पेंशन विहीन कर्मचारी)
