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Prof. Buddhadev

Others

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दबी हुई ख्वाहिशें

दबी हुई ख्वाहिशें

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दबी हुई ख़्वाहिशें से, कहीं मुस्कुराहटें रूक न जाये

खोए हुए सपने में अनसुनी आहटें कैसे सुना पाऐं!


दर्द कम नहीं होते, जब कुछ लम्हे भंवर में ठहर जाये

सुकून भरे लम्हात मिले तो सब तूफ़ाँ भी थम जाये


मद्धम सी बरसात, मझधार भी किनारे से मिल जाये

मिलते नहीं जिन्हे किनारे, अकेले किनारे कहाँ जाये!


संवर जाये जिन्दगी, बतायें जनाब, बहकर क्या करें

अनकहे अल्फ़ाज़ से नासमझ इशारे भी समझ आये


इसी का नाम ज़िन्दगी है, चलते रहिए अपनी राहों में

उलझते रहे जो अपनी राहों में, कोशिशें बेकार जाये!


"देव" भी तो फँसा है खुद की जाल में, हाल कैसे जताऐ!

यूं ही बंधन छूट गये, बताएं जनाब छूट कर कहाँ जायें!



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