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Prof. Buddhadev

Others

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परछाईयाँ !!!

परछाईयाँ !!!

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जहां कभी भी जाऊँ, मेरे साथ साथ चलती

सांसे बड़ी जिद्दी है कभी अकेले नहीं चलती


उनका कतरा कतरा मुझे एहसास कराती है

धड़कता दिल, हर कदम उम्मीदें नहीं रूकती


पता नहीं कहाँ से ऊर्जा का ये समुंदर आता है

लहरों की कैसी भंवर है जो कभी नहीं ठहरती


जब तक उम्र की ये अवधि मुक्कमल बाकी है

भरे बागबान में भी खुद की पहचान नहीं छूटती


तमन्नाओं की हर परछाई को झांक के देखा !

ये परछाइयाँ जिस्म के मलवे तले नहीं दबती


कहता "देव" की अपनी सांसों को पहचान लो

जिस्म बिखरता है, उनकी यादे नहीं बिखरती


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