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Debasish Dikshit

Others

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Debasish Dikshit

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चलो चलते हैं

चलो चलते हैं

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चलो चलते हैं 

राहें ना मिले सही 

पर मंजिल पर हम मिलते हैं 

चलो चलते हैं। 


कुछ ख्वाब था बिखर गया 

कुछ पल था निकल गया,

खुद को ढूँढते ढूँढते

नसीब के उप्पर प्यार आ गया,

कोई ना सही 

रात की अंधेरे में सुबह का धूप दीख गया

आज नहिं तो कल फिर मुलाकात होंगे 

रुक नहीं सकते 

चलो चलते हैं। 


इच्छाओं का सब्र मेहनतों का खबर 

समय का डर और जिंदगी का नजर 

कब कहां मिल जाए पता नहीं चलता, 

खुशियाँ ढूँढने लग जाएं

दुख को तरस आ जाता है,

इतनी सिद्दत से तो कोई प्यार नहीं कर सकता 

जितना कि दुख कर्ता हे,

फिर भी चलो आगे निकलते हैं 

कोई मिल जाये साथ लेकर चलते हैं। 


मत जो आनी है 

फिर भी रोक नहीं सकते, 

कोई पीछे छूट जाए 

ठहर नहीं सकते,

आज कोई साथ था कल कोई नया आएगा 

जो रुक जातें है 

समय उनको दुबारा मौका नहीं देता,

बेवक़ूफ़ हें वो लोग जो जिंदगी को आगे लेने के बजाए 

कुछ यूहीं ठहर जातें हे की 

कोई ज्यादा ही प्यार करता था मौत के सिवा। 


जिंदगी का क्या भरोसा 

महब्बत में क्या ही तरसा 

जो जान लेता है जिंदगी को 

वो ही याद रहता है हमेशा,

मेरा मेरा बोलके जिसके ऊपर हक्क अदा करूँ 

मजबूर हो जातें हे अलग होने से पहले 

फिर समझ आतें हें 

वो मेरा कभी था ही नहीं।

चालों चलते हैं 

आज की तैयारी में लोग जातें है 

सपना अधूरा है तो नए ख्वाब देखते है 

आज की महफिल खुशियों के नाम देकर 

कल की खुशी ढूँढते हें।

चलो चलते हैं।

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