चांद और प्रेम
चांद और प्रेम
भले चांद मुझसे बहुत दूर है ,
मगर रोशनी उससे पाता हूं मैं ,
वो किरणों से लिख गीत भेजा करें ,
उन्हें ही सदा गुनगुनाता हूं मैं ,
भले चांद मुझसे बहुत दूर है ,
संवारे सदा सारा नीला गगन ,
लुभाती सदा है सभी का नयन ,
सजाती धरा को समझकर चमन ,
कोई जब उसे खूबसूरत कहे ,
तो खुद को भी झटपट सजाता हूं मैं .....
लगे रात पूनम की वो चांदनी ,
सजाती मधुर गीतों से यामिनी ,
हृदय को खुशी दे वही रागिनी ,
लगे इतनी प्यारी कि हर पल उसे ,
गले खुद ही अपने लगाता हूं मैं .……..
मिलन को सुखद वह बनाया करें ,
विरह में तड़प वह जगाया करें ,
प्रणय और विरह गीत गाया करें ,
उड़ेले जो शब्दों से रस प्रीत का ,
तो उस रस का आनन्द उठाता हूं मैं ......
अंधेरे में कुछ पल को खो जाएं जब ,
तो फिर याद आये मुझे अपना रब ,
और भाये नहीं बात दुनिया की तब ,
वो जल्दी से आए मेरे सामने ,
ये ईश्वर से मन्नत मनाता हूं मैं ...
