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Prabhjot Singh

Others

5.0  

Prabhjot Singh

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बस यूँही

बस यूँही

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सर्दियों का मौसम ये जो है ना 

बहुत रुखा-पन लेकर आता है 

सर्द हवाएँ, छोटे दिन और लम्बी रात 

गरम पानी से नहाना, मोटे-मोटे कपड़े

पहन कर बाहर जाना 

ये जो सर्दियाँ है ना बहुत रुखा-पन

लाती है 

जिसमें मानो जिंदगी थम सी जाती है 


और फिर आता है वसंत का मौसम 

के सर्दियाँ ढली नहीं, वसंत का

मौसम आया वही 

जहाँ एक तरफ जान सुखती है 

वही इस मौसम में फिर से बसती है 

जिंदगी फिर से खिल उठती है 

मौसम में ताज़गी, पेड़ो पर नये

पत्ते और फूल उगते है 

कबूतर-चिड़िया जहाँ फिर चैन से

दाना चुगते है 


चलो अब ये मौसम तो गया और

आया मौसम गर्मियों का 

ये मौसम रुखा तो नहीं मगर फिर

भी सूखा ज़रूर देता है 

जी हाँ सूरज अपने ताप से बेहाल

बहुत कर देता है 

इस मौसम में जिंदगी थमती नहीं,

बड़ी सी लगती है 

जहाँ दिन लम्बे और रातें छोटी,

हवाएँ चले जहाँ कोसी-कोसी 

ये जो गर्मियाँ है ना बहुत सूखापन

लाती है 

जिसकी वजह से जिंदगी और जीने

की तलब बढ़ जाती है 


हार ना मानिये अभी क्योंकि

सूखापन हुआ है तो मोनसून

भी जल्द आएगा 

सूखे पड़े खेत और गलियारों

को फिर से भीगाएगा 

ये मोनसून भारी तलब भेजता है 

सूखे से जो हारे है, उनको नयी

राह दिखाता है 

ये आस एक देता है और

उम्मीद जगाता है

मानो कहता है 

"हार ना मानो तुम 

ये वक़्त ही तो है 

ज़रूर बदल जाता है"


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