बरगद के टूटे पत्तों ने
बरगद के टूटे पत्तों ने
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बरगद के टूटे पत्तों ने, जब नई शाख को देखा था
कुछ खुश थे कुछ गुस्से में, और कुछ ने कुछ ना बोला था,
कुछ बैठ हवा के पंखो पर, करने थे बातें यार चले
दोनों ही कहने सुनने को, करने थे बातें चार चले।
पर नयी नयी उन शाखों से, पेड़ों ने की मनमानी थी,
झोकों में उड़ने की इच्छा, पर सब ने मन में ठानी थी ,
वहीं कहीं कुछ सूखे पत्ते, शाखों पे नज़र गड़ाए थे,
गिरते पड़ते इस पग उस पग, सब के सब उकताये थे।
एक दूजे की खुशियों से पर, दोनों को ही हैरानी थी ,
और दूजे को जो भाए नहीं, वो चीज़ सभी को पानी थी,
पर सब की सब खुशियां कैसे, हर पत्ती को मिल जानी थी,
काश समझ पाते दोनों, हर पत्ती एक दिन मुरझानी थी।
