भेंट
भेंट
तुम्हें याद है
हमारी वह पहली बारिश
जिसकी बूंदों को ओढ़ कर
सिर्फ हम नहीं भींगे थे
कॉलेज के मैदान में
दूर तक पसरी
मुरझाई दूभ भी तर गयी थी
बस इतना ही नहीं हुआ था उस दिन
हुआ यूँ था कि
शहर में एक युवा ने
गाँव जी लिया था
एक बच्चा जो अब परिधि का हिस्सा था
तुम्हारी सोहबत में वह
केंद्र बन गया था
तुम्हें पता है
शहर की ट्रेन पकड़ते ही
ज्यों-ज्यों गाँव दूर होते जाता है
व्यक्ति का किरदार बदलने लगता है
ऐसा मेरे साथ भी होता है, और
ऐसा ही होता है
जनसेवा, जनसाधारण जैसे ट्रेनों के
जनरल डिब्बे में शहर की तरफ
सफर कर रहे मुसाफ़िरों के साथ
क्योंकि उनकी हर एक गठरियों में
एक उम्मीद बंधी होती है
जिसके सहारे वह नए रंगमंच पर
शानदार अभिनय करता है
बारिश में भींगते हुए
मैं खुद से मिल सका
कितना अच्छा होता है न
खुद से यूँ अचानक भेंट जाना
मानों खोया हुआ कोई खजाना मिल गया हो
मानों कोई बोझ उतर गया हो
कुछ देर के लिए ही सही
मानों कोई चिड़िया
पिंजड़े से आजाद हो गयी हो
मानों धूप में झुलसी फसल खिल गयी हो
मानों परदा गिर गया हो
नाटक खत्म हो गया हो|