बदहवसी
बदहवसी
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तुमने अपना घर भर लिया
और भर लिए अपने कान भी
अब नही सुनाई देगी तुम्हें
आने जाने वालों की हलचल
ना ही पक्षियों का कोलाहल
तुम अब हँसोगे खोखली हँसी
और रोओगे झूठा रोना
खोलोगे शिकायतों के पुलंदे अलाप
कर पुराने राग निकालोगे ढेरों झूठ
नये नये तुम्हारे मन की भाँय भाँय
तुम्हें चुप नहीँ रहने देगी
लेकिन तुम्हारे दिमाग की बत्ती
तुम्हें सिरे से गुल कर देगी
अब तुम बने रहोगे बंदर
और नाचते रहोगे डुगडुगी पर
कलाबाजियाँ खाते रहोगे
और हँसते रहेंगे मदारी तुम पर
अपने घड़ियली आँसुओं के बदले
कोई माँग लेगा कलेजा तुम्हारा तो
बदहवास से भागोगे तुम
पर नहीं चढ़ सकोगे पेड़ पर
क्योंकि डालियाँ तो तुमने पहले ही काट डाली थीं
और चौड़े तने पर चढ़ना तुमने सीखा ही नहीं अब तक