बचपन की होली
बचपन की होली
कोई लौटा दें मुझे बचपन की होली,
जहाँ साथ में चलती थीं मस्तों की टोली,
जहाँ होता था ना भेदभाव किसी से,
बस मस्ती में मगन रहती मस्तों की टोली!!
कोई मुझको लौटा दो बचपन की होली...
वो एक हाथ में पिचकारी और दूजे में ग़ुलाल ,
जब करते थे मोहन और रिंकी के गाल लाल,
उनके गुस्से को देख ऐसे भगती थीं टोली,
मानो दुश्मन के खेमे से चली हो जैसे गोली!!
बड़ी रँगीली होती थीं वो बचपन की होली...
अब ना मोहन हैँ ना रिंकी, और ना बचपन सी होली,
सभी व्यस्त हैँ अपनी दुनिया में, ना सीधी बोले कोई बोली..
लोग लड़ते हैँ ऐसे जैसे दुश्मन हो कोई..
ना किसी को याद बचपन, ना वो बचपन की होली!!
कोई तो यारों लौटा दो बचपन की होली,
जहाँ पर साथ चलती थीं मस्तों की टोली.....
