बचपन के खेल
बचपन के खेल
यादों की बरसात में फिर आज बरसात हुई और
आज फिर याद आ गया वह खेलों का मंजर
बचपन में खेलों के किस्से याद आ गए।
वह मारदड़ी, पकड़म पकड़ाई, पिट्ठू सितोलिया, क्रिकेट को खेलना याद आ गया।
कभी कच्ची कोड़ी कभी पक्की कोड़ी बनना याद आ गया।
धूल में बैठकर मकान बनाना याद आ गया।
सबका इकट्ठा साथ धूल में बैठकर अंताक्षरी खेलना याद आ गया।
और कुछ ना मिले तो मारवाड़ी गानों पर डांस करना याद आ गया।
बचपन का प्यारा आसमां के नीचे गोष्टीका जमाना याद आ गया।
आज किसकी टांग खींचनी है।
आज किसकी शैतानी करनी है।
आज किस को छकाना है।
बाद में सबका हंसते हंसते लोटपोट होना याद आ गया।
पेड़ों के नीचे छुप करके पेड़ से आम तोड़कर आम खाना याद आ गया।
किसी के यहां से अमरूद तोड़कर लाना याद आ गया।
आज फिर मुझको गुजरा जमाना याद आ गया।
कभी आउटडोर गेम जब कुछ ना मिले तो इंडोर गेम खेलना याद आ गया।
कैरम चाइनीस चेकर, गुट्टे ,लूडो, सांप सिढी, ताश खेलना याद आ गया।
कोई लौटा दे मेरे बीते हुए दिन।
बचपन के दिन वो सुनहरे दिन।
ना किसी की चिंता ना किसी की फिकर सब अपनी मस्ती में ।
आग लगे चाहे बस्ती में। कैसा जमाना था। कितना सुहाना था। आज समय कितना बदल गया।
आज तो बच्चे इन खेलों का नाम भी नहीं जानते, जो खेल हमने बहुत मस्ती से खेलें हैं।
जब हमने अपनी कहानियां बच्चों को सुनाई बच्चों का मन भी हर्षाया।
जब भी सुनते कि हम पेड़ पर चढ़ते।।
किसी से ना डरते।
तो मानने को भी तैयार नहीं होते हैं।
कि ऐसी भी कोई मस्ती होती है मगर वे क्या जाने हम कितने मस्तीखोर थे।
हमने तो अपनी जिंदगी को बहुत मस्ती से जीया था ।
अपने बचपन का भरपूर मजा हमने उठाया था। हर खेल में हमने अपना परचम लहराया था।
अपने बचपन को यादगार बनाया था। बचपन के दोस्तों का आज तक है हमारा साथ ।
आज भी बात हुई तो यही बात हम कर रहे थे।
कितना मजे से हम बचपन को साथ लेकर चल रहे थे।
डेढ़ घंटा कहां बीत गया पता ही नहीं चला बातों ही बातों में हमको बचपन में पहुंचा दिया।
मन करता है कोई लौटा दे मेरे बीते हुए दिन। बीते हुए दिन सुनहरे पल छिन।
इसमें वही दोस्त वही दोस्तों की टोली और वही मस्ती हो तो मजा ही आ जाए।
यह सुनहरी यादों के मोती जब-जब दोस्तों से बात करते हैं तो वापस निकल आते हैं।
और कभी कभी आप हमसे वापस याद करवा ही देते हैं।
इसीलिए हम आपको धन्यवाद देते हैं।
और अपनी यादों के मेले में चल देते हैं।