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Preeti Gupta

Children Stories

3.0  

Preeti Gupta

Children Stories

बाल्यावस्था (मन की बात)

बाल्यावस्था (मन की बात)

2 mins
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सबसे अच्छा जीवन बाल रूप ,

जीवन का सबसे अनमोल रूप ,

करता नित नई अठखेलियां ।


बाल मन बड़ा चंचल,

टिकता नहीं किसी भी पल,

करता नित नई अठखेलियां, 


अपने बाल रूप के हुनर से,

सबको खूब रिझाता,

करता नित नई अठखेलियां ।


इत-उत डोलता फिरता दिन-भर,

धमा-चौकड़ी खूब मचाता,

करता नित नई अठखेलियां।


तोतली बोली से सबके, 

चेहरे पर मुस्कान लाता,

करता नित नई अठखेलियां।


अच्छे-बुरे की पहचान कहाँ,

वो तो सबसे बतियाता,

करता नित नई अठखेलियां।


खेल-खिलौने लेकर वो तो,

सब बच्चों के साथ खेलता,

करता नित नई अठखेलियां।


दादा-दादी की लाठी बन,

पार्क में घूम आता,

करता नित नई अठखेलियां।


दादी का चश्मा लगा आँखो पर,

दादा की लाठी ले उनको

अपना अभिनय दिखाता,

करता नित नई अठखेलियां । 


तेरी एक मुस्कान से,

पापा का दिन बन जाता,

करता नित नई अठखेलियां।


पापा के कंधे पर बैठ कर,

दुनिया की सैर कर आता,

करता नित नई अठखेलियां।


छोटे-छोटे कदमों से चलकर,

पूरे घर को अस्त-व्यस्त कर देता,

करता नित नई अठखेलियां।


पकड़ने को जो पीछे आये,

झट से माँ के आँचल में छिप जाये,

करता नित नई अठखेलियां।


थोड़ी ही देर बाद,

फिर से नयी शरारत सूझ जाती,

करता नित नई अठखेलियां ।


थक कर जब सो जाता, 

घर में सन्नाटा हो जाता,

करता नित नई अठखेलियां।


तेरी मासूम चेहरे को निहारती,

माँ प्यार से तेरा माथा चूमती,

करता नित नई अठखेलियां ।


नींद में हल्की सी मुस्कान से,

मन ही मन खूब मुस्कुराता ,

करता नित नई अठखेलियां।


तुम सबकी जान हूँ मैं ,

इस बगिया की पहचान हूँ मैं, 

करता नित नई अठखेलियां ।


मेरे बचपन से तुम भी, 

अपना दुबारा बचपन जी लो,

करता नित नई अठखेलियां। 


इस व्यस्त भरे जीवन में ,

तुमको खूब हँसता और हँसाता हूँ 

करता नित नई अठखेलियां।


जब मैं बड़ा हो जाऊँगा, 

फिर ये पल कहाँ से लाऊँगा,

करता नित नई अठखेलियां ।


संस्कारों की सीख से, 

जब सीचो के मुझे,

तो सब मस्ती भूल जाऊँगा, 

करता नित नई अठखेलियां ।


तुम्हारी घर की रौनक हूँ मैं !मुझ से ही,

फैला हैं तुम सबके जीवन में उजियारा ,

करता नित नई अठखेलियां ।


अभी तो मस्ती कर लेने दो,

बचपन को जी भर के मुझे जी लेने दो,

करता नित नई अठखेलियां ।


ये समय न लौटकर के आयेगा, 

जीवन-चक्र में भी उलझ जाऊँगा ,

करता नित नई अठखेलियां ।


मेरे सपने तुम्हारे सपने पूरा करने को,

अग्रसर होकर जीवन में आगे बढने को,

फिर इस अवस्था से निकलना होगा,

करता नित नई अठखेलियां ।


अभी मुझे न रोको,

अपनी बचपन की यादे संजोने दो,

कैद कर दूँ इन्हें तुम्हारे मस्तिष्क के पटल पर,

करता नित नई अठखेलियां ।


अभी न मुझे फिक्र किसी की,

मनमौजी बन जी लेने दो,

करता नित नई अठखेलियां ।


मैं जब बड़ा हो जाऊँगा आपकी ,

यादों के चश्मे से अपना बचपन देखूँगा ,

करता नित नई अठखेलियां ।


 




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