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Khushi Gupta

Others

5.0  

Khushi Gupta

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अतिथि-एक मुसीबत

अतिथि-एक मुसीबत

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ऐ अतिथि तुम कब जाओगे,

कितने दिन यू हमारे साथ रह कर हमें तड़पाओगे।

हमारे पास रहकर अब कितनी खातिरदारी कराओगे,

ऐ अतिथि तुम हमारा घर छोड़कर कब जाओगे ।


होते तो हो तुम देवता, पर कितने दिन यू

राक्षस बन हमारा राशन खाओगे ।

ऐ अतिथि तुम कब जाओगे, कब जाओगे।

कब तक मेरी जमा पूँजी खरचवाओगे,

ऐ अतिथि तुम कब जाओगे, कब जाओगे ।


सूख गया है गला कोयल का गा गाकर,

अब थक गया है सूरज भी रोज़ निकलकर ।

कल तुमने जो मेरे घर मे उधम मचाया,

मेरी चुप्पी का है नाजायज़ फायदा उठाया।


डाली को देख तुमने साँप साँप चिलाया,

यू रात को तुमने हमें जगाया।

पूरे घर में तुमने गंद मचाया,

मुझे डिनर से तुमने खिचड़ी पर लाया,

क्यों तुमने मेरी जिंदगी में ऐसा षडयंत्र मचाया ।


अपनी बेसुरी आवाज़ से तुमने

पूरे घर में तूफान लाया,

हम सब को कान मे रूई डालने

पर मजबूर कराया।

क्यों नही बनते तुम अच्छे मेहमान

और अलविदा कह चले जाते ।

ऐ अतिथि तुम हमारा घर क्यों न चले जाते ।।


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