STORYMIRROR

Deepali Agrawal

Others

3.5  

Deepali Agrawal

Others

अर्थी

अर्थी

1 min
13.4K


उनके कंधोंं का भार बनी

क्या करती मजबूर थी मैं

उनको ये भार ढोना ही था

और  सोई पड़ी अचेत थी मैं

बँधी थी कसकर रस्सी से

न इधर उधर हो जाऊँ मैं

नहा धोकर तैयार थी

कि सजकर बाहर जाऊँ मैं

सामान बहुत आज आया था

कि कहीं कमी न पाऊँ मैं

सबका ही ध्यान मुझ पर था

कि सोते से जग जाऊँ मैं

लम्बा सफ़र तय किया था

लम्बा आराम भी पाऊँ मैं

हँसते हँसते सोने दो अब

कि नई दुनिया में जाऊँ मैं


Rate this content
Log in