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Gurudeen Verma

Others

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Gurudeen Verma

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ऐसा मैं सोचता हूँ

ऐसा मैं सोचता हूँ

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कुछ खोये बिना पहुंच चुका है वह,

उसकी वृद्धावस्था की मंजिल पर,

कदम चाहे, दो कदम नहीं बढ़ा पाया वह,

चेहरा चाहे कोई नहीं बांध पाया वह।


लेकिन सिर पर शोभित है उसके,

सफेद केश एक शान बनकर,

उसको अब सन्यासी बनना है,

और लेना है तलाक गृहस्थी से।


सारे प्रशिक्षण और शिक्षण,

वह पा चुका है ब्रह्माश्रम में,

और बाँट चुका है अपनी शिक्षा,

वह अपने विद्यार्थियों को।


यह उम्र का तकाजा है,

बहुत कर चुका है वह,

सरकारी सेवा अब तक,

और हो चुका है अब वह,

सेवानिवृत्त सरकारी नौकरी से।


वैसे मिलना चाहिए दूसरे को भी,

सरकारी सेवा का अवसर,

वह भी अनुभवशील है बहुत,

और करता है चिंतन वह भी,

अब वह इतना सक्षम नहीं है।


करना चाहिए उसको अब,

हरि भजन दुनियादारी छोड़कर,

ताकि पा सके वह पुण्य,

क्योंकि वह योग्यता प्राप्त है,

ऐसे कार्य करने के लिए,

ऐसा मैं सोचता हूँ।



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