आखिर क्यों लिखती हो?
आखिर क्यों लिखती हो?
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अक्सर लोग पूछा करते हैं
कि आखिर क्यों लिखती हो?
तो मैं उनसे अक्सर कहती हूँ
ख़ुशी भी बयान हो जाती है
नज़र भी नहीं लगती
दुःख बयान हो जाता है
और हँसी भी नहीं बनती
भावनाओं का कुछ ऐसा बवंडर
बस यूँ ही चुपके से ढल जाता है
बिना शोर मचाये
दिल का बोझ हल्का हो जाता है
लोगो से अच्छी दोस्त है
ये कहानियां मेरी
जिसमे किसी के दिल का हाल
बड़ी आसानी से बयान हो जाता है
ना ही ये पलट कर जवाब देती हैं
ना ही ये आपसे सवाल करती हैं
ये कुछ ऐसी दोस्त हैं
जो यूँ ही आपके सारे राज़
छुपा लेती हैं
तब मैं लोगो से पूछती हूँ
कि आखिर क्यों ना लिखूँ ?
