आज का आदमी
आज का आदमी
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सियासी चालों से परेशान आदमी
गरीबी और महँगाई से लाचार आदमी
सपने देखे एक खुशहाल जिंदगी के , आदमी
फिर भी हर पल मरता वो आम आदमी ...
अपने बोझ तले झुका , आदमी
बेकार के झगड़ों से त्रस्त आदमी
रिश्ते नातो के डोर से बंधा आदमी
इंसानियत से दूर् भागता आदमी ...
सरहद पर शहीद होता आदमी
भूख से भी गुज़र जाता आदमी
आतंक से घबराता आदमी
फिर भी ना सम्भलता आदमी
धर्म के हिस्सो में बँटा आदमी
जाति ,वर्ण में पिसा आदमी
विकृत मानसिकता से घिरा आदमी
घने अंधकारो में भटकता आदमी
नफरत की आग में जलता आदमी
हिंसा से अपना पेट भरता आदमी
अहंकार में मिट गया आदमी
कैसा
बन गया
यह आज का आदमी !
