बाहर न जाने क्यूँ सिर्फ़ ख़ामोशी रह जाती है...! बाहर न जाने क्यूँ सिर्फ़ ख़ामोशी रह जाती है...!
उस ख़ामोशी में भी कितना शोर था, एक अलबेला आलम चारो ओर था,।। उस ख़ामोशी में भी कितना शोर था, एक अलबेला आलम चारो ओर था,।।