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कोई आज फ़ना कर दे इस जिस्म को रूह से, कब से बेताब है ये नदी सागर से मिलने को। कोई आज फ़ना कर दे इस जिस्म को रूह से, कब से बेताब है ये नदी सागर से मिलने को।
मेरी गहराइयों को नाप ले, ऐसी छलांग नहीं बानी ! मेरी गहराइयों को नाप ले, ऐसी छलांग नहीं बानी !
आज नाप दो, ये पाप की धरती वामन के दो डग से। आज नाप दो, ये पाप की धरती वामन के दो डग से।
ममता, प्रेम , दया, छमा, करुणा, आज सब बेकार है। उस अहसास की चिता को तुम आज आग दो, कि ममता, प्रेम , दया, छमा, करुणा, आज सब बेकार है। उस अहसास की चिता को तुम आज आग ...