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प्रकृति भुगत रही है कैसा इसका दंड, क्योंकि लालच विकास का है उदंड। प्रकृति भुगत रही है कैसा इसका दंड, क्योंकि लालच विकास का है उदंड।
माँ आज नहीं है मेरे पास तो क्या हुआ, पाया उसका हाथ जब भी सर को छुआ। माँ आज नहीं है मेरे पास तो क्या हुआ, पाया उसका हाथ जब भी सर को छुआ।
जहाँ छा जाए चाय की मस्ती वह जगह बन जाती मदुशाला। जहाँ छा जाए चाय की मस्ती वह जगह बन जाती मदुशाला।