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चुराये ख्वाब अपने चश्म में अब भर रहा हूँ मैं।। चुराये ख्वाब अपने चश्म में अब भर रहा हूँ मैं।।
आरजू है बहुत वस्ल की अब हमें, मर न जाऊँ कहीं तिश्नगी से तिरी। आरजू है बहुत वस्ल की अब हमें, मर न जाऊँ कहीं तिश्नगी से तिरी।
पिता नीरद है गगन की, पिता धारा है जीवन की। पिता नीरद है गगन की, पिता धारा है जीवन की।