अल्फ़ाज़
अल्फ़ाज़
1 min
1.3K
अल्फाज़ो के उस आईने का क्या कसूर था जब उनकी तस्वीर को अपने हुस्न पर गुरूर था ,
मुकद्दर का वो चेहरा हमारी नज़रो से दूर था बस एक आवाज़ ही लफ्ज़ में दफन थी जब तक की उनके कदमो को खुद पर यकींन था एक ज़र्रा ही येः कह रहा था की कभी ख़ुशी कभी गम था .