नेकदिल राजा
नेकदिल राजा
एक गाँव में किशन नाम का एक लकड़हारा अपनी पत्नी के साथ रहता था। वह बहुत ही गरीब था । वह एक छोटी सी झोंपड़ी बना कर रहता था । वो इतना गरीब था कि झोंपड़ी में एक चटाई , एक मिट्टी का दीया, दो थाली और एक लोटा के अलावे कुछ भी नहीं था। उसकी पत्नी एक दो घर में बर्तन मांजती थी और किशन रोज सुबह जंगल में जा कर लकड़ी काटता फिर लकड़ियों को बाजार में बेचता और उससे जो पैसे मिलते उससे चुड़ा गुड़ इत्यादि ले कर घर आता और दोनों मिल कर भोजन करते इसी प्रकार उसकी रोजी रोटी चल रही थी।
एक रात दोनों चुड़ा गुड़ खा कर सोने की तैयारी कर ही रहे थे कि बाहर से किसी ने आवाज लगाई - ''कोई है''
किशन झोंपड़ी से बाहर जा कर देखा तो एक बूढ़ा व्यक्ति कम्बल ओढ़े खड़ा था। उसकी लम्बी दाढ़ी थी आंखें सूजी हुई। पैरों में मिट्टी सना हुआ । हाथों में लाठी थी।
किशन उसे देख कर पुछा--आप कौन है?
उस बूढ़े व्यक्ति ने कहा-- मेरा नाम मंगल है । मैं एक भिखारी हूँ । तीन दिनों से कुछ भी नहीं खाया है और ना पानी की एक भी बूँद मेरे मुख में गयी है। यहाँ से गुजर रहा था तो बड़ी थकान सी हुई और आगे बढ़ने की हिम्मत नहीं हो रही इसलिये मैंने आपको आवाज दी। क्या आप मुझे आज की रात अपने घर में शरण देंगे?
सुन कर किशन बोला-- हाँ हाँ क्यों नहीं अतिथि हमारे लिये भगवान होते हैं। आइये आइये अंदर आइये।
और किशन उस भिखारी को अंदर ले आया और पत्नी से पानी लाने को कहा।
पानी पीते ही जैसे उस भिखारी को जान में जान आ गई। फिर किशन की पत्नी ने कुछ चुड़ा और गुड़ ला कर उन्हें खाने को दिया। किशन अपने गमछे से उसे हवा देता रहा । खाने के बीच दोनों बाते कर रहे थे। भिखारी ने किशन की गरीबी की कहानी सुन कर बेहद भावुक हो गया और बोला-- आप जैसे अच्छे इंसान की भगवान क्यों नहीं सुनता? आप यहाँ के राजा से क्यों ना मदद लेते हैं। वो बहुत अच्छे है सुना है वो अपनी जनता का बहुत ख्याल रखते हैं।
किशन उसकी बाते सुन कर बोला-- राजा के दरबार में जाना आसान नहीं होता। हम जैसे लोगों को अंदर जाने कि अनुमति नहीं मिलती। सैनिक हमें बाहर से ही लौटा देंगे।
सुन कर भिखारी बोला - आप राजमहल जायें और राजमहल के बाहर जो सैनिक होगा उसे मेरा नाम बोलियेगा वो आपको अंदर जाने देगा। फिर आप राजा से अपनी समस्या बोल कर मदद मांग लीजियेगा।
किशन को उसकी बातें सुन कर आश्चर्य हुआ। जब इनकी इतनी पहचान बनी हुई है तो ये खुद क्यों नहीं राजा से मदद ले रहे? मन के दुविधा को दूर करने के लिये वो आखिर ये बात मंगल से पुछ ही लिया।
मंगल उसकी बाते सुन कर मुस्काया
'' मैं किसके लिये काम करूँ? मेरा दुनिया में कोई नहीं। घूमते फिरते कोई दो रोटी दे देता है बस और मुझे क्या चाहिये और अब तो मेरे एक पैर कब्र में है। आपकी तो पत्नी है। पूरा जीवन बचा हुआ है।
किशन ने कहा-- ठीक है मैं कल ही राजमहल जाता हूँ।
बातचीत करते करते दोनों सो गये।
सुबह किशन की नींद खुली तो देखा भिखारी जा चुका था।
फिर नित्य क्रिया करके वो राजमहल की ओर चल दिया।
राजमहल के मुख्य द्वार पर खड़े सैनिक से किशन बोला-- नमस्कार मेरा नाम किशन है। मुझे मंगल ने भेजा है।
सुन कर सैनिक उसे वहाँ रुकने को कह कर अंदर चला गया। थोड़ी देर बाद वो वापस आ कर बोला-- जाइये आपको महाराज ने बुलाया है।
फिर एक दुसरा सैनिक किशन को दरबार तक ले कर गया।
दरबार में आ कर किशन ने महाराज को प्रणाम किया।
राजा ने कहा-- आओ किशन मैं तुम्हारा ही इन्तजार कर रहा था।
'मेरा इन्तजार? ' आश्चर्य से किशन बोला।
राजा--हाँ मुझे तुम्हारा कर्ज चुकाना है ना
किशन--मेरा कर्ज?
राजा-- हाँ हाँ मैंने जो तुम्हारे घर भोजन किया पानी पिया और आराम किया था उसका कर्ज चुकाना है।
क्या? कल जो बुजुर्ग मेरे घर आये थे वो आप थे? किशन आश्चर्यचकित हुआ।
हाँ भई हाँ वो मैं ही था। मैं अपने जनता का हाल चाल जानने खुद ही रात को वेश बदल कर निकला करता हूँ और रोज किसी एक परिवार के दुख दूर करने की कोशिश करता हूँ।
मैं चाहता हूँ कि मेरे राज्य की जनता खुशहाल रहे। कोई भूखा ना सोये। कोई भीख ना मांगे।
राजा ने किशन को बताया।
किशन के मुख से अनायास ही निकल गया--- महाराज की जय हो महाराज की जय हो।
राजा ने किशन को अपना दरबारी बना लिया साथ ही उसकी पत्नी को भी राजमहल के रसोई में काम मिल गया।
अब खुशी खुशी किशन का परिवार चलने लगा ।