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Nikitasha Kaur

Others

1.0  

Nikitasha Kaur

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ईश्वर सब देख रहा है...

ईश्वर सब देख रहा है...

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पता नहीं कौन लोग रहे होंगे, कैसे लोग रहे होंगे जिन्होंने ईश्वर को बनाया। और बनाए रखने के लिए तरह-तरह की स्थापनाएं और दलीलें खड़ी कीं। मैं जब कभी इन तर्कों की ज़द में आ जाती हूं, मेरी हालत विचित्र हो जाती है। ईश्वरवालों का कहना है कि ईश्वर हर जगह मौजूद है, वह सब कुछ देख रहा है। थोड़ी देर को मैं मान लूं कि यह बात सही है तो! होगा क्या?

मैं बाथरूम में नहा रही हूं। एकाएक मुझे याद आता है कि बाथरूम में मैं अकेली नहीं हूं, कोई और भी है। कोई मुझे टकटकी लगाकर देख रहा है! और ख़ुद दिख नहीं रहा है। यानि कि बदले में मैं कुछ भी नहीं कर सकती। हे ईश्वर, यह तू क्या कर रहा है? कई दिन बाद तो साफ़ पानी आया है नलके में और तू ऊपर खूंटी पर चढ़कर बैठ गया! मैनर्स भी कोई चीज़ होती है, कृपानिधान! एक दिन तो ढंग से नहा लेने दे!

आपको याद होगा जब आप अपने एक परिचित के घर पाखाने में विराजमान थे, चटखनी ख़राब थी, किसी ने बिना नोटिस दिए दरवाज़ा खोल दिया और आप पानी-पानी हो गए थे। और इधर तो टॉयलेट में ईश्वर मेरे साथ है! अब क्या करूं! यह सर्वत्र विद्यमान किसी भी ऐंगल से आपको देख सकता है - ऊपर से, नीचे से, दायें से, बायें से...कहीं से भी। मन होता है कि क्यों न पटरी किनारे खेत में चलकर बैठा जाए! अब बचा ही क्या! सारी प्रायवेसी की तो ऐसी की तैसी फेर दी ईश्वर महाराज ने।

यह ग़ज़ब फ़िलॉसफी है कि ईश्वर सब कुछ देख रहा है और कह कुछ भी नहीं रहा। इससे ही बल मिलता होगा कर्मठ लोगों को। वह आदमी भी तो कर्मठ है जो सिंथेटिक दूध बना रहा है। वह बना रहा है और ईश्वर बनाने दे रहा है। तो सीधी बात है ईश्वर उसके साथ है। तो डरना किससे है फिर? इसीलिए वह मज़े से होली-दीवाली पर छोटे डब्बेवालों को इंटरव्यू देता है। मुंह पर ढाटा क्यों बांध रखा है इसने? शायद प्रतीकात्मक शर्म है यह! वरना तो उसे पता ही है कि चैनल वाले और देखने वाले, सभी ईश्वर के मानने वाले हैं। मैं सिंथेटिक दूध बनाता हूं तो ये सिंथेटिक ख़बरें बनाते हैं। सब एक ही ख़ानदान के चिराग़ हैं, एक ही ईश्वर की संतान हैं।

ऐसे कर्मठ लोग भरे पड़े हैं हर धंधे में। ईश्वर उनको देख रहा है मगर कह कुछ भी नहीं रहा! करने का तो फिर सवाल ही कहां आता है!

ईश्वर को यह बात अजीब लगे कि न लगे, मुझे बहुत अजीब लगती है।


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