Become a PUBLISHED AUTHOR at just 1999/- INR!! Limited Period Offer
Become a PUBLISHED AUTHOR at just 1999/- INR!! Limited Period Offer

Mamta Kashyap

Others

4.6  

Mamta Kashyap

Others

एम्प्टी नेस्ट सिंड्रोम

एम्प्टी नेस्ट सिंड्रोम

7 mins
427


उमा ने फ़ोन रखा और बगल वाली कुर्सी पर बैठ गयी। मैंने उसकी तरफ चाय की प्याली खिस्का दी और अखबार की तरफ मुड़ गया, अभी आधी हैडलाइन भी नहीं पढ़ पाया की वो बोली, "तो कुछ सोचा तुमने, या सिर्फ न्यूज़पेपर में उलझ कर रह गए?" 

सीने के अंदर से नीकलने को व्याकुल गहरी सांस को वापस सीने में दफ़न कर उसके प्रश्न का उत्तर देता की वो चाय की चुस्की लेते लेते फिर से बोल पड़ी, "तुम रहने ही दो वरिंदर, मैं संभाल लुंगी।" 

अब आप पूछेंगे को ये सुबह सुबह क्या ले कर बैठ गया मैं। क्या है ना ये सुबह की चाय का वक़्त और रात के खाने का वक़्त ही वो वक़्त है जब मिडिल क्लास फैमिलीज़ आने वाले और गुज़रे दिन का व्योरा लेते देते हैं। सुबह प्लानिंग होती है, और रात को काँसेकुएन्सेस पर विचार विमर्श। चाय वो बला है जो दिमाग की बत्ती जला कर पूरे दिन की प्लानिंग करने में सहायक बनती है; और रात की रोटी वो चीज जिसको खा कर या तो ये खुशी मिलती है कि दिन अच्छा गया, भर पेट खाना भी मिला या ये तसल्ली की दिन अच्छा नही गया, पर भर पेट खाना तो मिला! 

खैर, हम वापस मुद्दे पर आते हैं। ये चाय पीती, फ़ोन पर स्क्रॉल करती खूबसूरत, समय से अनछुई महिला, मेरी पत्नी है उमा। थोड़ा अजीब लगा होगा न ये ऊपर वाला सेंटेंस पढ़ कर? मुझे भी लगता था,जब मैं यंग था। क्या है ना, हम हिंदुस्तानी लड़को को ना प्यार करना सिखाया जाता है, ना प्यार जताना, शादी के बाद तो प्यार शब्द को भी मुँह तक लाना मतलब बीवी का गुलाम बनने से कम नही माना जाता। और मेरे जैसे मिडिल-ऐज-को-कब-का-पीछे-छोड़-चुके-और-बुढ़ापे-की-तरफ-अग्रसर-होते-हुए इंसान के मुँह से बीवी की सुंदरता की तारीफ अजीब ही नही, भौंडा भी लग रहा होगा आपको। मुझे भी लगता था, फिर मेरी मुलाकात एक ऐसे अमरीकी सहकर्मी से हुई जो जब देखो तब अपनी बीवी की बाते करता, वो कितनी अच्छी है, कितनी प्यारी है, कितनी सुंदर है, कितनी ऑसम है! दो दिन सुना मैंने, तीन दिन, हफ्ता भर भी सुना, फ़िर मुझे उसकी बातों में कुछ भी अजीब लगना बंद हो गया, और अपने आप ही मैं उससे अपनी उमा की बात करने लग गया। अब तो उमा की तारीफ उसके साथ और बाकी लोगों के साथ करने की एक अच्छी आदत गयी मुझे। वैसे भी सच बोलने में क्या हिचकिचाहट। उमा है ही बहुत सुंदर। 

ख़ैर वापस आते हैं आज की सुबह पर, ये मेरी पत्नी उमा एम्प्टी नेस्ट सिंड्रोम से गुज़र रही है! पूरी ज़िंदगी उमा ने अपना तन मन लगा कर, पूरी श्रद्धा से बच्चों को बड़ा किया, वैल्यूज दिए, अच्छा इंसान बनाया, सोते जागते सिर्फ उनके बारे में सोचा। और साथ ही साथ हम दोनों के मन में ये एक आस रही कि ये बड़े होंगे और फाइनली हम दोनों को अपने लिए वक़्त मिलेगा। उसी की सोच थी कि वर्ल्ड टूर पर जाएंगे, ज़बर्दस्ती मुझसे एक एकाउंट खुलवाया की इसमे हर महीने कुछ पैसे उस पर्पस के लिए डाल सके, हमारा वर्ल्ड टूर एकाउंट। अब जब बेटा शादी कर के, और बेटी नौकरी के लिए निकल गए हैं, एक मायने से विदा हो हो गए हैं। कौन ही वापस आता है अब। नौकरी, शादी, पढ़ाई बच्चो को खींच बाहर ही ले जाते हैं। भारत में ये एक नई आपदा है, मैं तो बोलता हूँ ओप्पोरचुनिटी है, एम्प्टी नेस्ट सिंड्रोम। उमा भी इसी से सफर कर रही है। उसे खाली घर अच्छा नही लग रहा, नास्टैल्जिया में जी रही है और वर्ल्ड टूर का खयाल तो कब का दिमाग से भाग गया, क्यों कि वो माँ है ना। मदरहुड और गिल्ट आपस में इस कदर उलझे हुए होते हैं कि अपने लिए सोच लेना भर ही काफी होता है माँओ के लिए गिल्ट के महासागर में डूब जाने के लिए। पैसे, साधन और समय होते हुए भी उसने मना कर दिया कहीं जाने से। इन फैक्ट उमा अपने इस एम्प्टी नेस्ट को फिर से भरना चाहती है। और उसके लिए उसे एक पॉ बेबी, एक पप्पी चाहये। 

अभी पप्पी आया नही है। सिर्फ उसका खयाल आया है। और खयाल सिर्फ आया ही नही है, दौड़ा ही जा रहा है, उमा को पप्पी का नाम शॉर्टलिस्ट करना है। उसने मुझसे सुबह अपने फ़ोन कॉल से पहले सलाह मांगी। लेकिन जैसे कि आप जानते हैं, मेरा ख़ुद का नाम वरिंदर है, आपको लगता है मैं किसी का नाम रखने के काबिल हूँ? मैं तो अपने बेटे का नाम जितेंदर रख के खानापूर्ति करने वाला था, लेकिन थैंक गॉड उमा ने मुझे रोक दिया, ऐसा नही है कि जितेंदर नाम अच्छा नही है, बात ये है कि मैंने उस नाम को थिंक थ्रू नही किया, और नाम वो चीज है जो हम बच्चों को ज़िन्दगी भर के लिए देते हैं, सिर्फ एक प्लेस होल्डर नही, एक गिफ्ट है। ये मेरी उमा ने मुझे बताया, और हमने बेटे का नाम पल्लव और बेटी का विधि रखा, पल्लव क्यों कि वो वसंत के समय इस धरती और आया और विधि क्यों की वह दुर्गा अष्टमी की पूजा के दिन! खैर अब उस पप्पी का नाम रखने की ज़िम्मेदारी फिर से उमा ने ली, जो अब तक सिर्फ खयालों में आया था। 

"टॉमी कैसा रहेगा?" उसने पूछा। 

"थोड़ा जेनेरिक नही है?" 

"तो फिर ब्रूनो?" 

"वही जवाब है मेरा। वैसे पप्पी तो हिंदुस्तानी है ना, नाम क्यों अंग्रेज़ रखना है?" 

"तो क्या नाम रखूं? मोती?" लगता है उमा मेरी संगति में रह रह कर इतने दशक, मेरे अनइंस्पायर्ड, अनक्रियेटिव, अनिनवेंटिव रंग में रंग ही गयी! "वल्लरी कैसा रहेगा अगर फीमेल पप्पी रही तो? मुझे बहुत पसंद है। या अजीब लगेगा ना? किसी का हमारे फ़्रेंडलिस्ट में नाम तक नही है ये? बुरा मान लेंगे लोग, है ना? ऐसा करता है वैलेरी रखते हैं, मिलता जुलता है, लेकिन अंग्रेज़ी नाम है।" उसने फिर पूछा। 

उमा इनवेस्टेड है इसमें, और मुझे ये समझ नही आता की नाम तो हम हमारे पप्पी का रखेंगे, किसी के बुरा अच्छा लगने से हमें क्या लेना देना! 

"कुछ बोलो न वरिंदर, सिर्फ चाय पिये जा रहे हो!" उसकी रुआंसी आवाज़ मुझे बिल्कुल अच्छी नहीं लगती। पर वो मेरी सुनती भी कहाँ है! 

"दो पप्पी लेते हैं, फीमेल का नाम मोना और मेल का रोबेर्ट! और जब दोनों को बुलाएंगे तो कितना मज़ा आएगा, रोबर्ट की मोना इधर आना!" मेरी बात पर उसकी रुआंसी आवाज़ की जगह जलती आंखों ने ले लिया! 

"नही लेना मुझे कोई पप्पी वप्पी, नही जाना वर्ल्ड टूर, तुम्हे सब मज़ाक लगता है। खाना भी तुम ही देख लो। नही बना रही मैं कुछ। न ही मैं खाऊँगी।" 

क्या करूँ, जैसे कि जानते हैं हम सब, प्यार करना तो नही हीं सिखाया गया हमें लड़कपन में, सेंसिटिव बनना भी नही सिखाया गया, हम मर्द सिर्फ मज़ाक कर, माहौल को हल्का बना कर ही हैवी सिचुएशन से डील करना जानते हैं या फिर ब्रशिंग अंडर द कारपेट टेक्निक से। और ये सिचुएशन हैवी ही था। बात यहाँ वर्ल्ड टूर या पप्पी की नही, बात यहाँ उमा के अकेलेपन की थी, लॉस ऑफ पर्पस का था। जाती हुई उमा के झुके हुए कंधे मुझे ताना दे रहे थे। अब नही तो कभी नही। मैंने अपना फ़ोन निकाला। चार पांच फ़ोन कॉल्स करने और उमा का फ़ेवरिट चिकन सूप बनाने के बाद मैं शाम होने का इंतज़ार करने लगा। 

उमा कमरे से बाहर नही आई, न मैं उसके पास गया। शाम को घंटी बजी, और एक ढका हुआ बास्केटनुमा पार्सल और एक लिफाफा आया। उस पार्सल और एनवेलप को ले कर और फ़ोन पर पल्लव, अन्नू और विधि को वीडियो कॉल लगा कर मैंने उमा के कमरे पर नॉक किया, और अंदर चला गया। उमा नाराज़ हों जाये तो नाराज़ होने का गिल्ट भी फील करती है। और ये गिल्ट उसे वापस अपने आपे में आने से रोक लेता है। उसने मुह फेर लिया पर मैंने उसके हाथ मे ज़बरदस्ती ये समान रख दिये। बास्केट से आवाज़ आयी और उमा ने झटके से अनकवर किया। अंदर एक छोटा सा गोल्डन रिट्रीवर देख कर गुस्सा, नाराज़गी और गिल्ट सब भूल गयी। मेरी पचास साल की उमा पांच साल की उमा बन गयी। 

"इससे मिलो उमा, ये है बलु सिंह, हमारे घर का सबसे नया सदस्य।" इस बार नाम को ले कर मैंने कोई घपले नही किये, सोच समझ कर बलु नाम दिया। 

"और माँ, एनवेलप भी तो खोलो!" बच्चो ने फ़ोन से कहा। 

और उस लिफाफे से निकला हमारे वर्ल्ड टूर का इटिनररी। इतना तो उसके लिए करना बनता है हमारा, उसका घर भले खाली हो जाये, दिल और मन कैसे खाली हो जाने दें! मेरी उमा, और आप सबकी उमाओं का मन कभी खाली न रहे, घर भरा हो न हो, आँखे सपनो से खाली और मन प्यार से खाली न रहे! खयाल रखें। 


Rate this content
Log in