जिनकी छिन गई जमीन
जिनकी छिन गई जमीन
पिछले एक दशक में
जिनकी छिन गई जमीन
वे धरा के हजारों जोतारी हार गये जिन्दगी की जंग
कुछ हत्या पर उतारु
कई बैठे है आत्महत्या को बेचैन
बंजर खेतों की मेड पर उदास, चिंतामग्न
जिनकी छिन गई जमीन
जिनके उजड़ गये खेत-खलिहान
जिनके यहां राहत की जगह
आफत की रेलगाड़ी पहुँची हमेशा
जहां धड़ाधड़ काट दिये गये हो जंगल
जहां फटाफट पाट दिये गये हो खेत
धुआं उगलती चिमनियों ने
जंगल को बना दिया दमे का मरीज
और सरकार ने जारी कर दिया बयान
कि हत्या पर उतारु तमाम अधनंगे-भिखमंगे लोग
बनते जा रहे है
लोकतंत्र के लिए सबसे बड़ा खतरा
जिनकी देह कर्ज के बोझ से हो गई दुहरी
बत्तियों की चमक से रत्तीभर भी ज्यादा नहीं होती
आपदाओं की सरकारी टोह
जिनके यहां जवानी से पहले दस्तक देता हो बूढ़ापा
जिनकी जीवन रेखा घटती-बढ़ती हो
सरकार की मर्जी से
जिनके लिए जी लेने से अधिक सहज हो गया हो
मर लेना
जिसने गिरवी रखे अपने ही खेत की मिट्टी खोदते-खोदते
चुन ली आत्महत्या की राह
इधर आज भी किसी न किसी गांव में
जुटे होंगे सरकारी अफसर
मौत को हत्या-आत्महत्या के बीच की
अबूझ पहेली बनाने में
शुक्र है इन दस सालों में
लाखों बेचैनिया मुड़ गई आत्महत्या की ओर
जिस दिन सब की सब बेचैनिया तब्दील हो जायेगी
आक्रोश की शक्ल में
जिनकी छिन गई जमीन वो हो जायेंगे हत्या पर उतारु
उस दिन देश के गृहमंत्री को बदलने पड़ेंगे
ग्रीन हंट के मायने।